Sulabho Bhakti Yuktanam #
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Song Name: Sulabho Bhakti Yuktanam
Official Name: Sanaiscara-krta Sri Narasimha Stuti
Author: Vyasadeva
Book Name: Bhavisyottara Purana
Language: Sanskrit
(१)
सुलभो भक्तियुक्तानां दुर्दर्शो दुष्ट चेतसाम्
अनन्य गतिकानां च प्रभुर्भक्तैक वत्सल:
शनैश्चरस्तत्र नृसिंहदेव चकारा ऽमलचित्तव्रित्ति:
प्रणम्य साष्टाङ्गमशेषलोक किरीट नीराजित पाद पद्मम्
(२)
श्री शनिरुवाच-
यत्पाद पङ्कज रज: परमादरेन
संसेवितं सकल कल्मष राशि नाशम्
कल्याण कारक मशेष निजानु गानां
स त्वं नृसिंह मयि धेहि कृपावलोकम्
(३)
सर्वत्र चञ्चलतया स्थितयाऽपि लक्ष्म्याः
ब्रह्मादिवन्द्यपदया स्थिरयान्यसेवि
पादारविन्द युगलं परमाधरेन
स त्वं नृसिंह मयि धेहि कृपावलोकम्
(४)
यद्रूप मागम शिर: प्रतिपाद्य माध्यं
आध्यात्मिकादि परिताप हरं विचिन्त्यम्
योगीश्वरैरपगताऽखिल दोष सङ्घै:
स त्वं नृसिंह मयि धेहि कृपावलोकम्
(५)
प्रह्लाद भक्त वचसा हरिराविरास
स्थम्बे हिरण्यकशिपुं य उदारभाव:
ऊर्वोर्निधाय उदरं नखरैर्ददार
स त्वं नृसिंह मयि धेहि कृपावलोकम्
(६)
यो नैज भक्तमनलाम्बुधि भूधरोग्र
श्रृङ्ग प्रपात विषदन्ति सरी सृपेभ्य:
सर्वात्मक: परम कारुनिको ररक्ष
स त्वं नृसिंह मयि धेहि कृपावलोकम्
(७)
यन्निर्विकार पररूप विचिन्तनेन
योगीश्वरा विषय सागर वीत रागा:
विश्रान्ति मापुर विनाशवतीम् पराख्याम्
स त्वं नृसिंह मयि धेहि कृपावलोकम्
(८)
यद्रूपमुग्र परिमर्दन भाव शालि
सञ्चिन्तनेन सकलाघ विनाशकारि
भूत ज्वर ग्रहसमुद्भव भीति नाशम्
स त्वं नृसिंह मयि धेहि कृपावलोकम्
(९)
यस्योत्तमं यश उमापति पद्म जन्म
शक्रादि दैवत सभासु समस्त गीतं
शक्तैव सर्वशमल प्रशमैक दक्षं
स त्वं नृसिंह मयि धेहि कृपावलोकम्
(१०)
एवं श्रुत्वा स्तुतिम् देव: शनिनां कल्पितां हरि:
उवाच ब्रह्म वृन्दस्थं शनिं तं भक्तवत्सल:
(११)
श्री नृसिंहोवाच:
प्रसन्नोऽहं शने तुभ्यं वरं वरय शोभनम्
यं वाञ्छसि तमेव त्वं सर्वलोक हितावहम्
(१२)
श्री शनिरुवाच
नृसिम्ह त्वं मयि कृपां कुरु देव दयानिधे
मद्वासरस्तव प्रीति करस्यात् देवतापते
(१३)
मत्कृतं त्वत्परं स्तोत्रं शृन्वन्ति च पठन्ति च
सर्वान् कामान् पूरयेथास्तेषां त्वं लोकभावन
(१४)
श्री नृसिंहोवाच:
तथैवास्तु शनेऽहं वै रक्षोभुवन संस्थित:
भक्त कामान् पूरयिष्ये त्वं ममैकं वच: शृनु
त्वत्कृतं मत्परं स्तोत्रं य: पठेच्छृनुयाच्चय:
द्वादशा ष्टम जन्मस्थाद् त्वद्भयं मास्तु तस्य वै
(१५)
शनिर्नरहरिं देवं तथेति प्रत्युवाच ह
तत: परमसंतुष्टो जयेति मुनयोऽवदन्
(१६)
श्री कृष्ण उवाच
इत्थं शनैश्चरस्याथ नृसिम्ह देव
संवाद मेतत् स्तवनं च मानव:
श्रुनोति य: श्रावयते च भक्त्या
सर्वाण्य भीष्टानि च विन्दते ध्रुवम्
UPDATED: October 4, 2017