Skip to main content

Agharir Atha Sabhyaih

·244 words·2 mins
kksongs
Author
kksongs
Un-official KKsongs

Agharir Atha Sabhyaih
#

http://kksongs.org/image_files/image002.jpg

Krsna Kirtana Songs est. 2001                                                                                                                                                 www.kksongs.org

Home Song Lyrics A

Song Name: Agharir Atha Sabhyaih

Official Name: Volume 2 Chapter 7 Verse 18

Author: Jiva Goswami

Book Name: Gopala Campu

Language: Sanskrit

LYRICS:

(१)

अघारिरथ सभ्यैः सभान्तरुपवेशी

प्रजाभिरभियातः समेत्य शुभवेशी

अवादि पुनरेतद्रविस्च तव पादौ

विलोकयितुमगदिहोद्यदुपसादौ

(२)

हसंस्तु हरिरूचे न चायमहिमंशुः

परं तु बत सत्राजिदेष मणिजांशुः

तदेतदवकर्ण्य प्रजास्तु गतवत्यः

स कृष्णमभि नागाद्यथाशु कृतहत्यः

(३)

हरिस्तदतिगर्वप्रकाशकृतिकामः

नृपाय मणिमस्मिन्नथार्ददनु रामः

अदत्त मणिमेष प्रसेणमनु यर्हि

प्रहासमनुचक्रे मुरारिरपि तर्हि

(४)

यदा तु समणिं तं जघान वनसिंहः

गभीरमनसासीत्तदा च यदुसिंहः

तदीयजनसङ्घस्तदाथ मुरशत्रुम्

अपावददवेत्य प्रति स्वमपि शत्रुम्

(५)

हरिस् तु पुरुसद्भिर्विमृग्य परिनष्टम्

ददर्श हययुक्तं तमेव हरिदष्टम्

मृगेन्द्रपदचिह्नैः प्रपद्य गिरिदेशम्

ददर्श सह सर्वैर्हतं च स मृगेशम्

(६)

अथात्र पदमृक्षप्रभोस्च स लुलोके

मणिं तु न हि तच्च प्रतीतावति लोके

तदीयपदमृच्छन्जगाम गिरिरोकम्

विवेश तदमत्वाखिलस्य निजशोकम्

(७)

प्रविश्य स महर्क्षप्रकृष्टपुरुगामी

अपश्यदथ रत्नं तदीयहृतिकामी

यदेव किल धात्रीमुपेत्य सुकुमारः

विहारपदमगात्तदृक्षकुलसारः

(८)

सरत्नमजिहीर्षन्मुरारिरिति धात्री

अकूजदतिभीता सकम्पातरगात्री

स भल्लकुलमुख्यस्तदाथ हतबुद्धिः

बभूव सह तेन प्रकृष्य कृतबुद्धिः

(९)

सहाष्टादशयुग्मांश तेन दिवसानाम्

व्यधात युगमुच्चैरनुद्यदवसानाम्

विहृत्य मुरवैरी स तेन चिरकालम्

चकार करुणाक्तं स्वकीयमिव बालम्

(१०)

स चाथ ह्र्दि शुद्धस्तमेत्य गतिसारम्

निवेद्य निजमगः प्रसन्नमकृतारम्

स्यमन्तमपि कन्यां ददे तु वरभक्त्या

स जाम्बवदभिख्यः परं च परशक्त्या

(११)

सकन्यमणिरागान्मुरारिरथ गेहम्

समर्प्य मणिमीशे ननन्द वलितेहम्

त्रपार्तमतिसत्राजिदत्र निजकन्याम्

मणिं च मुरशत्रावदित्सदतिधन्याम्

(१२)

मुरारिरथ कन्यामियेष न तु रत्नम्

सभक्तिरिह सा यत्परं तु कृतयत्नम्

द्रवन्तमथ सत्राजितस्तु कृतघातम्

स्यमन्तहरम् अक्रूरकादिमतयातम्

उपेत्य शतचापं जघान वनमाली

स्यमन्तमणिमक्रूरकाच्च मतिशाली

(१३)

समेत्य यदुवृन्दं प्रतोष्य बहुकर्मा

स एष तव गोष्ठक्षितीश कृतशर्मा

व्रजस्य नयनालिं बिभर्ति जिततन्द्रः

सदापि परिपूर्णस्त्वदीयकुलचन्द्रः

UPDATED: October 16, 2015